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उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल इटावा के जिला प्रभारी रवि पोरवाल (छुन्नी)के साले डॉ रवि गुप्ता द्धारा रचा गया इतिहास
आपको बताते चले कि बीबीएयू के डॉ. रवि गुप्ता ने बायोप्लास्टिक उत्पादन के लिए पेटेंट प्राप्त किया। यह पेटेंट उन्हें भारत सरकार ने गाय के गोबर व नए बैक्टीरिया के उपयोग से कम लागत वाले बायोप्लास्टिक उत्पादन के लिए दिया है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले लक्ष्मीबाई कालेज के क्लास रूम की दीवारों को गोबर से रंगने का मामला इन दिनों सुर्खियों में है। वहीं लखनऊ स्थित बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के एन्वॉयरमेंटल माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डॉ. रवि गुप्ता को गाय के गोबर और नए बैक्टीरिया का उपयोग करके कम लागत वाले बायोप्लास्टिक के उत्पादन के लिए भारत सरकार से 20 साल के लिए पेटेंट हासिल हुआ है। कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने डॉ. रवि गुप्ता व उनकी टीम को इस उपलब्धि के लिए बधाई देते हुए बायो प्लास्टिक के व्यावसायीकरण पर जोर दिया है।डॉ. रवि गुप्ता के मुताबिक, पेट्रोलियम आधारित सिंथेटिक प्लास्टिक दैनिक जीवन में सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली सामग्री में से एक है, जिसके परिणामस्वरूप गैर-अपघटनीय अपशिष्ट पदार्थ जमा हो जाते हैं जो हजारों वर्षों तक पर्यावरण में रहते हैं और प्लास्टिक प्रदूषण पैदा करते हैं। पृथ्वी पर कई प्रजातियाँ प्लास्टिक के कारण होने वाले प्रदूषण से पीड़ित हैं और यह ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारणों में से एक है। सतत विकास के लिए, हमें बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों का उपयोग करके अपने पर्यावरण को प्लास्टिक प्रदूषण से बचाने की आवश्यकता है। प्लास्टिक जैसे गुणों वाले बायोडिग्रेडेबल पदार्थ गन्ना, मक्का, गेहूं, चावल, केले के छिलके आदि जैसे बायोमास से बनाए गए हैं। ऐसे वांछनीय गुण सूक्ष्मजीवों द्वारा संश्लेषित पॉलीहाइड्रॉक्सी ब्यूटिरेट में भी मौजूद हैं। बैक्टीरिया से कई प्रकार के पीएचबी की खोज की गई है और बायोप्लास्टिक के रूप में इस्तेमाल किया गया है। हालाँकि, इसमें कई बड़ी चुनौतियाँ भी हैं, जैसे उच्च उत्पादन लागत और महंगा कच्चा माल जो इसके व्यावसायिक अनुप्रयोगों को सीमित करता है। डॉ. रवि गुप्ता ने बताया कि हमारा अध्ययन व्यवस्थित रूप से पीएचबी-संचय करने वाले बैक्टीरिया की जांच और उनकी विशेषताओं का पता लगाता है। पीएचबी उत्पादन को लागत प्रभावी बनाने के लिए, हमने बैक्टीरिया के विकास के लिए एक संशोधित गाय के गोबर-आधारित माध्यम विकसित किया है। इस विधि से बायोप्लास्टिक उत्पादन की लागत को व्यावसायिक रूप से उपलब्ध पीएचबी की तुलना में लगभग 200 गुना कम कर दिया है। 2023 में गाय के गोबर के माध्यम का उपयोग करके बायोप्लास्टिक के उत्पादन के लिए इस नई पद्धति के लिए भारतीय पेटेंट भरा था। पेटेंट कार्यालय, भारत सरकार ने सावधानीपूर्वक जांच के बाद हमें 20 साल के लिए पेटेंट प्रमाण पत्र जारी किया है। डॉ. गुप्ता और उनके पीएचडी स्कॉलर देशराज दीपक कपूर पिछले 4 वर्षों से विभिन्न कच्चे माल से लागत प्रभावी बायोप्लास्टिक बनाने की इस परियोजना पर काम कर रहे हैं। बायोडिग्रेडेबल, गैर-विषाक्त घाव भरने वाले ड्रेसिंग पैच, तेजी से ऊतक और हड्डी के उत्थान और विभिन्न पशु संक्रमण मॉडल में दवा यौगिकों की नैनो डिलीवरी के विकास के लिए पीएचबी की नैनोशीट भी बना रहे हैं। इस अध्ययन को आगे बढ़ाने और बड़े पैमाने पर बायोप्लास्टिक बनाने के लिए अधिक फंडिंग की तलाश कर रहे हैं ताकि इसके विभिन्न अनुप्रयोगों का पता लगाया जा सके। खाद्य उद्योग, नैनो प्रौद्योगिकी और बायोमेडिकल क्षेत्रों में बायोप्लास्टिक के जबरदस्त अनुप्रयोग हैं। हम सतत विकास और प्लास्टिक कचरे को कम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो मानव और पशु-स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है।
डा. गुप्ता ने बताया कि हमारा अध्ययन व्यवस्थित रूप से पीएचबी संचय करने वाले बैक्टीरिया की जांच और उनकी विशेषताओं का पता लगाता है। पीएचबी उत्पादन को लागत प्रभावी बनाने के लिए हमने बैक्टीरिया के विकास के लिए एक संशोधित गाय के गोबर पर आधारित माध्यम विकसित किया है।