अंतरराष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस पर डीएफओ अतुल कांत शुक्ला ने संत विवेकानंद के छात्र छात्राओं को लुप्त होती प्रजाति के बारे में किया जागरूक

इटावा। अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस के अवसर पर सोसाइटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (स्कॉन) द्वारा सामाजिक वानिकीय प्रभाव एवं गंगा सुरक्षा समिति के सहयोग से संत विवेकानंद सीनियर सेकेंडरी पब्लिक स्कूल में संगोष्ठी का आयोजन संकटग्रस्त गिद्धों पर किया गया। संगोष्ठी का शुभारंभ अतुलकांत शुक्ला (प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी प्रभाग इटावा) द्वारा मां सरस्वती का माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन कर किया गया,उन्होंने कहा कि गिद्ध आमतौर पर मरे हुए शवों को खाकर प्राकृतिक रूप से सफाई कर्मी का काम करते थे,गिद्ध शवाें के सड़ने से फैलने वाली बीमारियों को रोकने में मदद करते हैं, इसलिए गिद्ध पारिस्थिकी तंत्र की वो कड़ी हैं जो हमारे वातावरण को स्वच्छ रखने में अपना योगदान देती है लेकिन हमारी अनदेखी के कारण प्रकृति का महत्वपूर्ण पक्षी विलुप्तता के कगार पर पहुंच गया।

उन्होंने बताया कि हिमालयन ग्रिफ़ॉन गिद्ध जिस तरह से अभी कुछ दिनों पहले चंबल में बड़ी संख्या में देखने को मिले जो यह दर्शाता है कि चंबल में गिद्दो के लिए पर्याप्त संख्या में भोजन उपलब्ध है यही वजह है कि हिमालय से यह गिद्ध चंबल तक पहुंचे है!साथ ही डी एफ ओ ने गिद्दों की अन्य विशेषता बताते हुए कहां कि गिद्ध की तेज़ उड़ने एवं सूंघने की क्षमता हम लोगो के लिए बड़े काम आती है विशालकाय जंगलों में जहां गिद्ध बड़ी संख्या में उड़ रहे होते है उससे पता चलता है कि उस जगह पर कोई विशालकाय जानवर मरा पड़ा है


उन्होंने कहां कि अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस मनाने का सबसे अच्छा तरीका गिद्धों के अच्छे पहलुओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।यह माता-पिता,शिक्षकों और बच्चों की देखभाल करने वाले अन्य लोगों के लिए इन महत्वपूर्ण पक्षियों के बारे में शिक्षित करना व जानकारी बढ़ाना जरूरी है।
प्रधानाचार्य/निदेशक डॉ.आनंद ने मुख्य अतिथि अतुलकांत शुक्ला को पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत किया एवं प्रतीक चिन्ह भेंटकर आभार प्रकट किया।
कार्यक्रम संयोजक स्कॉन महासचिव डॉ.राजीव चौहान ने कार्यक्रम में मौजूद सैकड़ों छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए कहां कि पूरे विश्व में गिद्धों की 23 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से 9 भारत में मिलती हैं ओरिएंटल व्हाइट बैकड,लॉन्ग बिल्ड, स्लेंडर-बिल्ड,हिमालयन ग्रिफान,रेड हेडेड,इजिप्शियन ,बियरडेड, सिनेरियस और यूरेशियन ग्रिफॉन पाई जाती हैं।


इन 9 प्रजातियों में से अधिकांश के विलुप्त होने खतरा मंडरा रहा है।
गिद्धों की संख्या सन 1980 तक भारत में चार करोड़ से भी ऊपर थी 90 के दशक में एकदम से इनकी संख्या में तेजी से गिरावट आई। 2017 तक आते-आते इनकी संख्या मात्र 19 हज़ार रह गई एवं निरंतर गिरती ही जा रही है।
केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा गिद्धों के संरक्षण के लिये ‘गिद्ध कार्य योजना (2020-25) के अंतर्गत संरक्षण की विभिन्न परियोजनाएं प्रारंभ की गई हैं।
डॉ.चौहान ने आवाहन किया कि इसके संरक्षण करने का प्रयास सरकार तो कर ही रही है लेकिन इन्हें बचाने और संरक्षित करने का प्रयास हमको भी करना चाहिए!
कार्यक्रम में वन क्षेत्राधिकार अशोक कुमार शर्मा,डीपीओ नमामि गंगे संजीव चौहान उपस्थित रहे!
कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉक्टर हेरोल्ड, वरिष्ठ शिक्षक पुष्पेंद्र सिंह सेंगर, अभिषेक वार्ष्णेय, भगत सिंह, शबीना खान , अर्चना कुलश्रेष्ठ, मुहम्मद फारिक, विजय तिवारी आदि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

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