ब्रजेश पोरवाल-एडीटर &चीफ टाइम्स ऑफ आर्यावर्त
न्याय की मांग को लेकर पीड़ित परिवार पर टूटा पुलिस का कहर
कन्नौज: छिबरामऊ तहसील के बेहटा खास गांव में 15 वर्षीय रुचि गुप्ता उर्फ लाडो की मौत के बाद उठे तूफान ने पूरे इलाके को झकझोर कर रख दिया है। आरोप है कि श्रीकृष्णा अस्पताल में डॉक्टर द्वारा गलत इंजेक्शन दिए जाने से रुचि की 18 मई को मृत्यु हो गई। इसके बाद न्याय की गुहार लगाने पहुंचे परिवार को न केवल प्रशासनिक बेरुखी का सामना करना पड़ा, बल्कि महिलाओं समेत परिजनों पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर उन्हें घायल कर दिया।
घटना की जानकारी मिलते ही पोरवाल समाज सेवा समिति (रजि.) दिल्ली के पदाधिकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल 25 मई को पीड़ित परिवार से मिलने बेहटा खास गांव पहुंचा। समिति के मुख्य संरक्षक सुधीर चंद्र पोरवाल, संरक्षक गोविंद पोरवाल, अध्यक्ष कांत पोरवाल, वरिष्ठ महासचिव मनोज गुप्ता, वरिष्ठ उपाध्यक्ष ओम प्रकाश पोरवाल, संगठन मंत्री नवीन पोरवाल और वरिष्ठ समाजसेवी कृष्ण चंद्र पोरवाल ने पीड़ित परिवार की आपबीती सुनी।
परिवार ने बताया कि रुचि को बुखार की शिकायत थी, जिसे लेकर वे श्रीकृष्णा अस्पताल ले गए थे, जहां डॉक्टर द्वारा दिए गए इंजेक्शन से उसकी मौत हो गई। जब शाम को परिवार व स्थानीय लोग अस्पताल प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर जुटे, तो मौके पर पहुंची पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग किया। महिलाओं के साथ अभद्रता की गई और पुरुषों पर लाठीचार्ज हुआ।
अगले दिन इंसाफ की गुहार को लेकर जब सर्व समाज के लोग कोतवाली पहुंचे, तो एक बार फिर पुलिस और पीएसी द्वारा लाठीचार्ज किया गया, जिसमें कई लोग घायल हो गए।
इस पूरे घटनाक्रम से वैश्य समाज में भारी आक्रोश है। समिति के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि पुलिस प्रशासन अस्पताल प्रबंधन को बचाने में जुटा है। एक सप्ताह बीतने के बाद भी मृतक बेटी को न्याय नहीं मिला, उलटे पीड़ित परिवार पर ही मुकदमे दर्ज कर उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है।
समिति ने मांग की है कि:
- अस्पताल के डॉक्टर व स्टाफ के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाए,
- लाठीचार्ज करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई हो,
- पीड़ित परिवार व घायलों को समुचित मुआवजा दिया जाए,
- झूठे मुकदमे वापस लिए जाएं,
- और पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच हो।
मुख्य संरक्षक सुधीर चंद्र पोरवाल ने कहा, “हमारी बेटी को न्याय मिलने तक वैश्य समाज चुप नहीं बैठेगा। यह केवल एक परिवार नहीं, पूरे समाज की अस्मिता का सवाल है।”
इस दुर्भाग्यपूर्ण और अमानवीय घटना ने प्रशासनिक व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह है कि सरकार इस दिशा में क्या ठोस कदम उठाती है।
